दिल्ली सरकार की ₹10,000 करोड़ की लोन मांग: नेशनल स्मॉल सेविंग्स फंड का उपयोग और इसके प्रभाव
दिल्ली सरकार ने हाल ही में केंद्र सरकार से ₹10,000 करोड़ का लोन मांगने का निर्णय लिया है। यह लोन नेशनल स्मॉल सेविंग्स फंड (NSSF) के माध्यम से लिया जाएगा। यह कदम वित्तीय विशेषज्ञों और विपक्षी दलों के बीच चर्चा का केंद्र बन गया है। इस लेख में हम जानेंगे कि यह लोन क्यों मांगा गया है, NSSF का क्या महत्व है, और इसके दिल्ली की अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव।
क्या है नेशनल स्मॉल सेविंग्स फंड (NSSF)?
नेशनल स्मॉल सेविंग्स फंड की स्थापना 1999 में की गई थी। इसका उद्देश्य पब्लिक सेविंग्स को एक अलग खाते में सुरक्षित रखना था, ताकि इसका पारदर्शी और सही उपयोग सुनिश्चित हो सके। यह फंड मुख्यतः इन स्रोतों से जुड़ा होता है:
- पोस्टल सेविंग्स: पोस्ट ऑफिस की सेविंग्स अकाउंट्स और रिकरिंग डिपॉजिट।
- सेविंग सर्टिफिकेट्स: जैसे किसान विकास पत्र और नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट।
- सोशल सिक्योरिटी स्कीम्स: जैसे पीपीएफ (पब्लिक प्रोविडेंट फंड) और सीनियर सिटिजन सेविंग्स स्कीम।
यह फंड केंद्रीय वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा संचालित किया जाता है। NSSF के माध्यम से लोन लेना आमतौर पर अधिक महंगा होता है, क्योंकि इसका ब्याज दर बाजार से अधिक होती है।
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दिल्ली सरकार को लोन की आवश्यकता क्यों पड़ी?
दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए सरकार पर कई प्रकार की मुफ्त योजनाओं (फ्रीबीज) को लागू करने का दबाव है। इनमें शामिल हैं:
- फ्री बिजली और पानी।
- फ्री एजुकेशन और हेल्थकेयर।
- फ्री बस यात्रा (महिलाओं के लिए)।
- वरिष्ठ नागरिकों के लिए मुफ्त तीर्थ यात्रा।
- महिलाओं को ₹1,000 प्रति माह देने की योजना।
इन योजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर धन की आवश्यकता है, जिसके लिए सरकार NSSF से लोन लेना चाहती है।
वित्तीय स्थिति और विवाद
दिल्ली सरकार का वित्त विभाग इस निर्णय का विरोध कर रहा है। वित्त विभाग के अनुसार:
- लोन लेने से दिल्ली पर दीर्घकालिक वित्तीय दबाव बढ़ेगा।
- 2039 तक दिल्ली सरकार को ₹1.27 लाख करोड़ का प्रिंसिपल और ₹57,000 करोड़ का ब्याज चुकाना होगा।
- दिल्ली का रेवेन्यू डेफिसिट दशकों बाद ₹3,000 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है।
विपक्षी दलों, खासकर बीजेपी ने इसे वित्तीय कुप्रबंधन बताते हुए आलोचना की है।
NSSF से लोन: फायदे और नुकसान
फायदे:
- NSSF एक सुरक्षित स्रोत है, जहां से राज्यों को लोन मिल सकता है।
- यह फंड सीधे जनता की बचत से संबंधित होता है, जिससे केंद्र सरकार के लिए इसकी पारदर्शिता सुनिश्चित रहती है।
नुकसान:
- इसका ब्याज दर बाजार की तुलना में अधिक है।
- राज्य सरकारों पर दीर्घकालिक वित्तीय दबाव बढ़ता है।
- गलत उपयोग से जनता की बचत जोखिम में आ सकती है।
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दिल्ली की मौजूदा वित्तीय स्थिति
दिल्ली सरकार का डेट-टू-जीडीपी अनुपात 3.9% है, जो अन्य राज्यों के मुकाबले काफी कम है। इसके बावजूद, दिल्ली के लिए पहली बार रेवेन्यू डेफिसिट की स्थिति चिंता का विषय बन गई है।
पिछले वर्षों में दिल्ली हमेशा रेवेन्यू सरप्लस में रही है:
- 2017-18: ₹9,000 करोड़।
- 2022-23: ₹14,400 करोड़।
लेकिन 2024-25 में ₹3,000 करोड़ के रेवेन्यू घाटे का अनुमान है।
क्या कहता है विपक्ष?
बीजेपी ने इसे "रेवड़ी कल्चर" का परिणाम बताते हुए आलोचना की है। विपक्ष का कहना है कि मुफ्त योजनाओं के कारण राज्य की वित्तीय स्थिति खराब हो रही है।
निष्कर्ष
दिल्ली सरकार का ₹10,000 करोड़ का लोन मांगने का निर्णय कई सवाल खड़े करता है। हालांकि दिल्ली का डेट-टू-जीडीपी अनुपात अब तक नियंत्रित है, लेकिन आने वाले वर्षों में यह बड़ा बोझ बन सकता है। ऐसे में दिल्ली सरकार को सतर्क होकर खर्च करना होगा और वित्तीय प्रबंधन में सुधार लाना होगा।