क्या फ्रीबीज देश में ‘पैरासाइट क्लास’ बना रहे हैं? सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान

 

क्या फ्रीबीज देश में ‘पैरासाइट क्लास’ बना रहे हैं? सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान

Introduction:
भारत में चुनाव आते ही फ्रीबीज (Freebies) यानी मुफ्त योजनाओं की बाढ़ आ जाती है। राजनीतिक दल वोटरों को आकर्षित करने के लिए मुफ्त राशन, नकद सहायता, फ्री बिजली-पानी और अन्य योजनाओं की घोषणाएं करते हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा बयान दिया है – “क्या हम देश में एक पैरासाइट क्लास (परजीवी वर्ग) तैयार कर रहे हैं?” इस बयान ने फ्रीबीज पर बहस को और तेज कर दिया है।

Supreme Court India


सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है?

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने महाराष्ट्र की ‘लाडकी बहन योजना’ पर टिप्पणी करते हुए कहा कि चुनाव से ठीक पहले इस तरह की घोषणाएं गलत हैं। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑस्टिन जॉर्ज मसी की बेंच ने कहा कि "लोगों को बिना काम किए ही राशन और पैसे मिल रहे हैं, जिससे वे काम करने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं।"



फ्रीबीज का बढ़ता ट्रेंड: राजनीतिक दलों की रणनीति

फ्रीबीज कोई नई चीज़ नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में यह एक चुनावी हथियार बन गई है। दिल्ली, तेलंगाना, तमिलनाडु, पंजाब और अन्य राज्यों में चुनावों के दौरान बड़े पैमाने पर मुफ्त योजनाएं लॉन्च की जाती हैं।

  • दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और बीजेपी ने फ्री बिजली, पानी, बस यात्रा, महिलाओं के लिए नकद सहायता जैसी घोषणाएं कीं।
  • महाराष्ट्र: ‘लाडकी बहन योजना’ के तहत 21-65 वर्ष की महिलाओं को ₹1,500 प्रति माह देने की घोषणा की गई।
  • मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़: सरकारें पहले से ही महिलाओं को नकद सहायता, मुफ्त शिक्षा और सस्ते सिलेंडर की सुविधा दे रही हैं।

क्या फ्रीबीज अर्थव्यवस्था के लिए खतरा हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने फ्रीबीज पर नाराजगी जताते हुए कहा कि यह अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक हो सकता है। यदि सरकारें लगातार मुफ्त योजनाएं जारी रखती हैं, तो सवाल उठता है कि इसके लिए पैसा कहां से आएगा?

  • राजस्व पर बोझ: सरकारी खजाने से पैसा खर्च होने के कारण विकास कार्य प्रभावित हो सकते हैं।
  • काम करने की इच्छाशक्ति में कमी: जस्टिस गवई ने कहा कि महाराष्ट्र में किसानों को मजदूर नहीं मिल रहे हैं, क्योंकि लोग मुफ्त राशन और नकद सहायता पर निर्भर हो रहे हैं।
  • लंबे समय तक टिकाऊ नहीं: फ्रीबीज से वोट मिल सकते हैं, लेकिन इससे आर्थिक स्थिरता को नुकसान पहुंचता है।


क्या सरकारों को फ्रीबीज बंद कर देनी चाहिए?

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रवृत्ति की आलोचना की है, लेकिन इस पर पूरी तरह रोक लगाना संभव नहीं है। कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर ये योजनाएं सही तरीके से लागू की जाएं, तो गरीबों की मदद की जा सकती है।

समाधान क्या हो सकता है?

  1. फ्रीबीज की जगह रोजगार: सरकार को लोगों को मुफ्त चीजें देने के बजाय नौकरियां और बिजनेस के अवसर देने चाहिए।
  2. वास्तविक जरूरतमंदों तक पहुंचे लाभ: फ्रीबीज का लाभ केवल गरीबों तक ही सीमित किया जाए, ताकि सरकारी संसाधनों का सही उपयोग हो।
  3. दीर्घकालिक योजनाएं: शिक्षा, स्वास्थ्य और इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दिया जाए ताकि लोगों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।

निष्कर्ष:

फ्रीबीज पर सुप्रीम कोर्ट का बयान एक महत्वपूर्ण चेतावनी है। यह सच है कि जरूरतमंदों की मदद जरूरी है, लेकिन मुफ्त योजनाओं का अतिरेक अर्थव्यवस्था और समाज के लिए खतरनाक हो सकता है। हमें एक संतुलित नीति अपनाने की जरूरत है, जिसमें कल्याणकारी योजनाएं भी हों और लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास भी किए जाएं।

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