जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला: NH-44 पर 80% टोल में कमी

 

जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला: NH-44 पर 80% टोल में कमी

पिछले कुछ वर्षों में भारत के सड़क बुनियादी ढांचे में काफी सुधार हुआ है, फिर भी कई यात्रियों को अक्सर गड्ढों से भरे राजमार्गों का सामना करना पड़ता है और फिर भी उन्हें भारी टोल शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। हालाँकि, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के एक हालिया फैसले ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को जम्मू और कश्मीर में विशिष्ट टोल प्लाजा पर टोल दरों को 80% तक कम करने का निर्देश देकर एक बड़ी मिसाल कायम की है।

Jammu Kashmir toll reduction


याचिका क्यों दायर की गई?

दक्षिण में कन्याकुमारी से उत्तर में श्रीनगर तक फैले राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच-44 की खराब स्थिति के खिलाफ एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई थी, जो महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब और जम्मू-कश्मीर सहित कई राज्यों से होकर गुजरता है। जनहित याचिका में तर्क दिया गया कि टोल शुल्क वसूले जाने के बावजूद सड़क की स्थिति खराब होती जा रही है, जिससे यात्रियों को परेशानी हो रही है।

याचिका में इस बात पर जोर डाला गया है कि:
✅ जम्मू और कश्मीर में NH-44 का लगभग 60-70% हिस्सा दिसंबर 2021 से निर्माणाधीन था।
✅ राजमार्ग पर गड्ढे, मोड़ और अन्य खतरे थे, जिससे यात्रा असुविधाजनक और असुरक्षित हो गई थी।
✅ NHAI के नियमों के अनुसार, राजमार्ग परियोजनाओं के पूरा होने के बाद ही टोल वसूला जाना चाहिए।



उच्च न्यायालय का फैसला: यात्रियों के लिए बड़ी जीत

जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि टोल शुल्क केवल तभी वसूला जाना चाहिए जब सड़क उपयोगकर्ताओं को अच्छी तरह से बनाए गए बुनियादी ढांचे का लाभ मिलता हो। न्यायालय के प्रमुख निर्देशों में शामिल हैं:

➡️ 80% टोल कटौती : जम्मू और कश्मीर में लखपुर और बान प्लाजा पर टोल अब मूल राशि का सिर्फ 20% होगा।
➡️ कोई अतिरिक्त टोल प्लाजा नहीं : क्षेत्र में NH-44 के 60 किमी के भीतर कोई नया टोल प्लाजा स्थापित नहीं किया जाना चाहिए।
➡️ तत्काल कार्यान्वयन : नई टोल दरों को बिना देरी के लागू किया जाना चाहिए।

इस निर्णय का राष्ट्रव्यापी प्रभाव

यह ऐतिहासिक फैसला अन्य राज्यों के लिए मिसाल कायम कर सकता है। अगर भारत भर की अदालतें इसी तरह का रुख अपनाती हैं, तो कई क्षेत्रों में यात्रियों को टोल में महत्वपूर्ण कमी देखने को मिल सकती है, जहाँ सड़कों की स्थिति खराब है। इस फैसले से निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं:

✔️ एनएचएआई और टोल ऑपरेटरों की ओर से अधिक जवाबदेही।
✔️ बेहतर सड़क रखरखाव सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों पर दबाव में वृद्धि।
✔️ टोल में इसी तरह की कटौती की मांग करने वाले अन्य राज्यों में संभावित कानूनी चुनौतियाँ।

भारत की टोल संग्रह प्रणाली में आगामी परिवर्तन

भारत सरकार टोल संग्रह को सुव्यवस्थित करने और निजी वाहन मालिकों के लिए यात्रा लागत को कम करने के लिए नए तरीके तलाश रही है। कुछ प्रस्ताव इस प्रकार हैं:

🔹 वार्षिक एवं आजीवन टोल पास :

  • वार्षिक टोल पास: 50,000 रुपये में भारत के राष्ट्रीय राजमार्गों पर असीमित यात्रा की अनुमति देता है।
  • आजीवन टोल पास: ₹5,00,000 के लिए 15 वर्ष की वैधता, सभी राजमार्गों और एक्सप्रेसवे पर लागू।

🔹 सैटेलाइट आधारित टोल संग्रह :

  • वाहनों पर जल्द ही उपग्रहों के माध्यम से नज़र रखी जा सकेगी, जिससे टोल बूथों पर रुकने की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।
  • पहले 20 किमी की यात्रा निःशुल्क होगी, उसके बाद टोल की गणना यात्रा की दूरी के आधार पर की जाएगी।


अंतिम विचार

जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय के फैसले ने एक मजबूत मिसाल कायम की है, जिससे यह सुनिश्चित हुआ है कि सड़क उपयोगकर्ता केवल अच्छी तरह से बनाए गए राजमार्गों के लिए भुगतान करें। यह फैसला पूरे भारत में इसी तरह के सुधारों को प्रेरित कर सकता है, जिससे राजमार्ग यात्रा अधिक किफायती और कुशल बन जाएगी।

आप इस निर्णय के बारे में क्या सोचते हैं? क्या अन्य राज्यों को भी ऐसी ही नीतियाँ लागू करनी चाहिए? हमें टिप्पणियों में बताएँ!

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