हिमाचल प्रदेश की वित्तीय संकट: सरकार मंदिरों से क्यों मांग रही है चंदा?
हिमाचल प्रदेश सरकार इस समय गंभीर वित्तीय संकट (Financial Crisis) से गुजर रही है। राज्य में चल रही विभिन्न वेलफेयर स्कीम्स को जारी रखने के लिए सरकार ने मंदिरों (Temples) से चंदा (Donations) मांगने की अपील की है। इस कदम को लेकर राजनीतिक विवाद भी छिड़ गया है, जहां बीजेपी (BJP) ने इसे सनातन धर्म का अपमान बताया है।
इस लेख में हम समझेंगे:
✔️ हिमाचल सरकार मंदिरों से चंदा क्यों मांग रही है?
✔️ राज्य में वित्तीय संकट के पीछे की मुख्य वजहें
✔️ इस फैसले पर विपक्ष और सरकार की प्रतिक्रिया
हिमाचल सरकार ने मंदिरों से चंदा क्यों मांगा?
29 जनवरी 2025 को हिमाचल प्रदेश सरकार के सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट डिपार्टमेंट ने एक नोटिफिकेशन जारी किया। इसमें राज्य के चार्टिबल ट्रस्ट और मंदिरों से मुख्यमंत्री सुख आश्रय योजना और मुख्यमंत्री सुख शिक्षा योजना के लिए वित्तीय सहायता की अपील की गई।
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मुख्यमंत्री सुख आश्रय योजना क्या है?
👉 लॉन्च: फरवरी 2023
👉 उद्देश्य: अनाथ और बेसहारा बच्चों को रहने, पढ़ाई और देखभाल की सुविधा देना
मुख्यमंत्री सुख शिक्षा योजना क्या है?
👉 लॉन्च: सितंबर 2024
👉 उद्देश्य: गरीब और जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त शिक्षा और आर्थिक सहायता देना
सरकार का कहना है कि ये दोनों योजनाएँ सामाजिक भलाई के लिए हैं, इसलिए मंदिरों से दान लेने में कोई बुराई नहीं है।
हिमाचल प्रदेश में मंदिरों के पास कितनी संपत्ति है?
हिमाचल प्रदेश सरकार के अधीन 36 बड़े मंदिर आते हैं, जिनमें शक्तिपीठ नैना देवी, चिंतपूर्णी मंदिर, बज्रेश्वरी देवी मंदिर, ज्वाला जी मंदिर शामिल हैं।
मंदिरों की संपत्ति और डोनेशन (2022 रिपोर्ट)
💰 कुल संपत्ति: ₹500 करोड़ से ज्यादा
💰 कैश रिजर्व और गोल्ड होल्डिंग्स: अनुमानित ₹500 करोड़
💰 हर साल मंदिरों को मिलने वाला चढ़ावा: करोड़ों में
बीजेपी का विरोध: सनातन धर्म का अपमान?
इस फैसले पर हिमाचल प्रदेश बीजेपी ने कड़ा विरोध जताया है।
🔹 पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि सरकारी खर्चों के लिए मंदिरों से चंदा मांगना निंदनीय है।
🔹 बीजेपी का आरोप है कि कांग्रेस सरकार सनातन धर्म का अपमान कर रही है।
🔹 उन्होंने यह भी कहा कि प्राकृतिक आपदा या महामारी के समय मदद लेना समझ में आता है, लेकिन सरकार की योजनाओं को चलाने के लिए धार्मिक स्थलों से पैसे मांगना गलत है।
हिमाचल सरकार की सफाई
🔹 हिमाचल प्रदेश सरकार का कहना है कि मंदिरों पर कोई दबाव नहीं डाला गया है, यह पूरी तरह स्वैच्छिक योगदान होगा।
🔹 उन्होंने दावा किया कि बीजेपी सरकार ने भी 2020 में कोविड-19 राहत के लिए मंदिरों से ₹1 करोड़ लिया था।
🔹 सरकार का कहना है कि मंदिरों के अलावा बड़ी कंपनियों, NGOs और आम जनता से भी डोनेशन की अपील की गई है।
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हिमाचल प्रदेश में वित्तीय संकट क्यों आया?
1. प्राकृतिक आपदाएँ (Natural Disasters)
⏩ पिछले दो सालों में लैंडस्लाइड, फ्लैश फ्लड और बादल फटने की घटनाओं से हिमाचल प्रदेश को भारी नुकसान हुआ।
⏩ 2023 में अनुमानित ₹10,000 करोड़ का नुकसान हुआ, जबकि 2024 में ₹842 करोड़ का नुकसान हुआ।
2. केंद्र सरकार से कम मदद (Less Financial Aid from Center)
⏩ हिमाचल सरकार का दावा: केंद्र सरकार ने राज्य को पर्याप्त राहत नहीं दी।
⏩ सरकार के अनुसार, GST रिफंड के ₹3,000-₹3,500 करोड़ अभी भी बकाया हैं।
3. चुनावी वादों से बढ़ता बोझ (Election Promises & Freebies)
⏩ कांग्रेस ने चुनाव के दौरान पुरानी पेंशन योजना (Old Pension Scheme - OPS) लागू करने का वादा किया था, जिससे सरकारी खर्च बढ़ा।
⏩ फ्री बिजली, महिलाओं को ₹1,500 की मदद जैसे चुनावी वादों से राज्य की वित्तीय हालत बिगड़ी।
4. भारी कर्ज और खर्च (Debt & Expenditure)
⏩ हिमाचल प्रदेश पर ₹86,000 करोड़ का कर्ज है।
⏩ हर साल सरकार ₹12,000 करोड़ सैलरी और ₹9,000 करोड़ पेंशन पर खर्च करती है।
क्या मंदिरों से पैसा लेना सही है?
इस मुद्दे पर जनता की भी मिश्रित प्रतिक्रिया है।
✔️ समर्थन में:
👉 मंदिरों से मिलने वाला दान समाज कल्याण के लिए ही इस्तेमाल होना चाहिए।
👉 सरकार गरीब बच्चों और अनाथों की मदद के लिए पैसा मांग रही है।
❌ विरोध में:
👉 धार्मिक स्थलों का पैसा सरकार के प्रशासनिक खर्चों के लिए नहीं होना चाहिए।
👉 सरकार को टैक्स बढ़ाकर या अन्य स्रोतों से फंड जुटाना चाहिए।
निष्कर्ष
🔸 हिमाचल प्रदेश सरकार गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रही है।
🔸 मंदिरों से दान मांगने का निर्णय स्वैच्छिक है, लेकिन इसे लेकर राजनीतिक विवाद शुरू हो गया है।
🔸 बीजेपी का कहना है कि यह सनातन धर्म का अपमान है, जबकि सरकार इसे गरीबों की मदद का जरिया बता रही है।
🔸 राज्य में प्राकृतिक आपदाएँ, चुनावी वादे, और बढ़ता कर्ज सरकार की आर्थिक स्थिति बिगड़ने की बड़ी वजहें हैं।