डीलिमिटेशन 2026: क्या दक्षिण भारत की लोकसभा सीटों में कटौती होगी?
Introduction
डीलिमिटेशन 2026 को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार पर सीधा हमला बोला है। उनका आरोप है कि यह प्रक्रिया जानबूझकर दक्षिण भारतीय राज्यों की लोकसभा सीटों को कम करने की साजिश है। हाल ही में, तमिलनाडु में ऑल-पार्टी मीटिंग हुई, जिसमें डीलिमिटेशन के प्रस्ताव को खारिज करने का प्रस्ताव पास किया गया।
डीलिमिटेशन क्या है?
डीलिमिटेशन (Delimitation) का अर्थ है निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण। भारत के संविधान के अनुसार, हर जनगणना (Census) के बाद लोकसभा और विधानसभा सीटों के वितरण की समीक्षा होनी चाहिए। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर सांसद (MP) एक समान जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करे।
लेकिन 1976 में एक संवैधानिक संशोधन (42वां संविधान संशोधन) के जरिए इस प्रक्रिया को 2001 तक फ्रीज कर दिया गया था, जिसे बाद में 2026 तक बढ़ा दिया गया।
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डीलिमिटेशन 2026 पर विवाद क्यों?
1. दक्षिण भारत बनाम उत्तर भारत
दक्षिण भारतीय राज्य जैसे तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने पिछले दशकों में जनसंख्या नियंत्रण को प्राथमिकता दी। वहीं, उत्तर भारतीय राज्यों में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई है।
- यदि लोकसभा सीटों का पुनर्वितरण केवल मौजूदा जनसंख्या के आधार पर होता है, तो उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसी अधिक जनसंख्या वाले राज्यों को ज्यादा सीटें मिलेंगी।
- दक्षिण भारतीय राज्यों को नुकसान होगा क्योंकि वहां जनसंख्या वृद्धि दर अपेक्षाकृत कम रही है।
2. तमिलनाडु का दावा: लोकसभा में सीटें घटेंगी
मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कहा कि डीलिमिटेशन लागू होने पर तमिलनाडु की लोकसभा सीटें 39 से घटकर 31 रह जाएंगी।
3. नया संसद भवन और बढ़ी हुई सीटें
नई संसद भवन की क्षमता 888 सांसदों के बैठने के लिए डिज़ाइन की गई है। इसका मतलब है कि सरकार भविष्य में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ा सकती है। अगर ऐसा हुआ तो उत्तर भारत को सबसे अधिक फायदा होगा।
संभावित बदलाव: किस राज्य को कितनी सीटें मिलेंगी?
यदि 2026 में डीलिमिटेशन होता है और लोकसभा सीटों को 1971 की जनसंख्या के बजाय 2021 की अनुमानित जनसंख्या के आधार पर निर्धारित किया जाता है, तो अनुमानित परिवर्तन कुछ इस प्रकार हो सकता है:
क्या केंद्र सरकार सीटों में कटौती करेगी?
- गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि तमिलनाडु की सीटों में कोई कटौती नहीं की जाएगी। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अगर डीलिमिटेशन होता है, तो दक्षिण भारतीय राज्यों को लोकसभा में कम प्रतिनिधित्व मिलेगा और उत्तर भारतीय राज्यों को अधिक सीटें मिलेंगी।
डीलिमिटेशन को लेकर राजनीतिक रणनीति
तमिलनाडु सरकार की रणनीति
- ऑल-पार्टी मीटिंग बुलाना – डीएमके, कांग्रेस, लेफ्ट पार्टीज़ और एआईएडीएमके सहित तमिलनाडु की अधिकतर पार्टियां इसके खिलाफ हैं।
- साउथ इंडियन राज्यों को एकजुट करना – तमिलनाडु सरकार चाहती है कि केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना भी इस विरोध में शामिल हों।
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बीजेपी सरकार की स्थिति
- केंद्र सरकार कह रही है कि डीलिमिटेशन निष्पक्ष रूप से किया जाएगा और किसी राज्य को नुकसान नहीं होगा।
- लेकिन, आरएसएस सहित कुछ संगठनों ने कहा है कि डीलिमिटेशन से उत्तर भारतीय राज्यों को ज्यादा प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
क्या डीलिमिटेशन 2026 में होगा?
संभावना है कि:
- लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ेगी।
- उत्तर भारत को अधिक सीटें मिलेंगी।
- दक्षिण भारत को संतुलन बनाए रखने के लिए राज्यसभा में अधिक प्रतिनिधित्व मिल सकता है।
- केंद्र सरकार कोई ऐसा फॉर्मूला लाने की कोशिश करेगी जिससे सभी राज्यों को बराबरी का महसूस हो।
निष्कर्ष
डीलिमिटेशन 2026 भारत की राजनीति में सबसे बड़ा बदलाव ला सकता है। उत्तर भारत की बढ़ती जनसंख्या के कारण अगर सीटों का पुनर्वितरण हुआ तो दक्षिण भारतीय राज्यों का प्रभाव लोकसभा में कम हो सकता है। इसीलिए, तमिलनाडु समेत अन्य दक्षिण भारतीय राज्य इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं।
आने वाले समय में देखना होगा कि केंद्र सरकार क्या निर्णय लेती है। क्या वह सभी राज्यों को संतुष्ट करने के लिए कोई नया समाधान निकालती है? या फिर डीलिमिटेशन टाल दिया जाएगा?
आपका इस मुद्दे पर क्या विचार है? कमेंट में जरूर बताएं!