ट्रंप बनाम फेडरल रिजर्व: ब्याज दरों की जंग और भारत पर प्रभाव
क्या 2024 में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी अमेरिकी अर्थव्यवस्था की दिशा बदल देगी? और क्या ट्रंप की फेडरल रिजर्व पर नाराजगी अमेरिका की मौद्रिक स्वतंत्रता को खतरे में डाल सकती है? इन सवालों के जवाब न सिर्फ अमेरिका, बल्कि भारत जैसे विकासशील देशों के लिए भी बेहद अहम हैं।
📌 ट्रंप की आलोचना: फेडरल रिजर्व पर क्यों भड़के?
डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में फेडरल रिजर्व (Fed) के चेयरमैन जेरोम पॉवेल की नीतियों पर तीखी आलोचना की। उनका आरोप है कि पॉवेल डेमोक्रेटिक पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए ब्याज दरों में कटौती नहीं कर रहे हैं।
ट्रंप का तर्क है कि 2024 के चुनावों से पहले ब्याज दरें घटनी चाहिए, ताकि इकॉनमी को बूस्ट मिले और महंगाई पर नियंत्रण रहे। लेकिन पॉवेल ने स्पष्ट किया है कि फेड की नीति "डेटा-ड्रिवन" है और वो राजनीतिक दबाव में नहीं आएंगे।
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💬 क्या खतरे में है फेड की स्वतंत्रता?
अमेरिका की मौद्रिक नीति को हमेशा से फेड की स्वतंत्रता पर आधारित माना गया है। लेकिन ट्रंप के बयानों ने इस इंडिपेंडेंस पर सवाल खड़े कर दिए हैं:
- 2018-2020 में राष्ट्रपति रहते हुए उस वक्त भी ट्रंप ने फेड पर खुलेआम दबाव बनाया था।
- अब 2024 में चुनावी दौड़ में उतरते ही वो फिर से फेड के फैसलों पर सवाल उठा रहे हैं।
यदि ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बनते हैं, तो फेड के चेयरमैन को हटाने की कोशिश या फेड की शक्तियों में कटौती जैसे कदम उठाए जा सकते हैं, जो अमेरिका के संवैधानिक संतुलन को प्रभावित कर सकते हैं।
📉 अगर ब्याज दरें घटती हैं तो क्या होगा?
फेडरल रिजर्व के निर्णय का असर पूरी दुनिया की फाइनेंशियल मार्केट्स पर होता है। अगर ब्याज दरें घटती हैं:
- अमेरिका में डॉलर कमजोर होगा और ग्लोबल इनवेस्टमेंट उभरती अर्थव्यवस्थाओं की ओर बढ़ेगा।
- सोना और बिटकॉइन जैसे असेट्स में तेजी आ सकती है।
- लेकिन अगर ट्रंप राजनीतिक दबाव में ब्याज घटवाते हैं, तो फेड की साख पर असर पड़ सकता है।
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🇮🇳 भारत पर क्या असर पड़ेगा?
भारत की अर्थव्यवस्था भी फेड की नीतियों से प्रभावित होती है:
- रुपया मजबूत हो सकता है अगर डॉलर कमजोर होता है। इससे आयात सस्ता होगा, विशेष रूप से तेल और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्र में।
- FII (Foreign Institutional Investment) भारत में बढ़ सकता है, जिससे शेयर बाजारों में तेजी आ सकती है।
- लेकिन अगर फेड की साख गिरे, तो ग्लोबल मार्केट्स में अनिश्चितता बढ़ सकती है और भारत भी उसका शिकार होगा।
👨⚖️ जेरोम पॉवेल की स्थिति क्या है?
फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल को ट्रंप ने ही 2017 में नियुक्त किया था, लेकिन बाद में उन्होंने पॉवेल की नीतियों का विरोध शुरू कर दिया। पॉवेल का कार्यकाल 2026 तक है और वो अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने की बात करते हैं।
अगर ट्रंप सत्ता में आते हैं और पॉवेल को हटाने की कोशिश करते हैं, तो यह अमेरिका की संवैधानिक संस्थाओं की मजबूती के लिए बड़ा झटका होगा।
🔎 निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप और फेडरल रिजर्व के बीच यह संघर्ष सिर्फ ब्याज दरों का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र, संस्थागत स्वतंत्रता और वैश्विक आर्थिक स्थिरता का मामला भी बन गया है। भारत को अपनी नीतियां इस संभावित अस्थिरता को ध्यान में रखकर बनानी होंगी, खासकर जब 2024 के अमेरिकी चुनाव नजदीक हैं।
क्या आपको लगता है कि फेड को राजनीतिक दबाव से पूरी तरह मुक्त रहना चाहिए? अपनी राय हमें कमेंट में जरूर बताएं।