नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट (जेवर): भारत का सबसे बड़ा और सबसे महत्वाकांक्षी हवाई अड्डा
भारत तेजी से वैश्विक एविएशन सेक्टर में अपनी उपस्थिति मजबूत कर रहा है, और इसी दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है – नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट, जिसे आमतौर पर जेवर एयरपोर्ट के नाम से जाना जाता है। यह एयरपोर्ट न केवल उत्तर भारत के लिए एक प्रमुख हवाई केंद्र बनने जा रहा है, बल्कि इसका उद्देश्य है – दिल्ली एनसीआर के हवाई यातायात का दबाव कम करना, क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देना, और भारत को एक ग्लोबल लॉजिस्टिक्स हब में बदलना।
परियोजना की पृष्ठभूमि
जेवर एयरपोर्ट की परिकल्पना वर्षों पहले की गई थी, लेकिन वास्तविक निर्माण कार्य 2021 में शुरू हुआ। यह एयरपोर्ट उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर जिले के जेवर क्षेत्र में बनाया जा रहा है। परियोजना की जिम्मेदारी स्विट्ज़रलैंड की कंपनी Zurich Airport International AG को दी गई है, जबकि निर्माण कार्य टाटा प्रोजेक्ट्स द्वारा किया जा रहा है।
- Read more: click her
परियोजना के चरण और विस्तार
नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट को कुल चार चरणों में विकसित किया जाएगा:
- पहला चरण (2025 तक पूरा होने की संभावना): इसमें एक रनवे और एक टर्मिनल होगा, जिससे प्रति वर्ष 1.2 करोड़ यात्री सेवा ले सकेंगे।
- दूसरा चरण: दूसरा रनवे और विस्तार के साथ क्षमता बढ़ेगी।
- तीसरा और चौथा चरण: अंततः 6 रनवे और 7 करोड़ यात्रियों की वार्षिक क्षमता होगी, जिससे यह भारत का सबसे बड़ा एयरपोर्ट बन जाएगा।
भौगोलिक और रणनीतिक महत्व
यह एयरपोर्ट दिल्ली-एनसीआर के दक्षिणी हिस्से से करीब 75 किलोमीटर दूर है, जो यमुना एक्सप्रेसवे से सीधे जुड़ा हुआ है। यह एयरपोर्ट दिल्ली, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, आगरा और अलीगढ़ जैसे शहरों को जोड़ते हुए लॉजिस्टिक हब बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है। साथ ही, इस एयरपोर्ट से हाई-स्पीड रेल, मेट्रो, बस टर्मिनल और वेयरहाउसिंग सिस्टम को जोड़ा जाएगा।
आर्थिक लाभ
नोएडा एयरपोर्ट का सबसे बड़ा लाभ होगा – रोज़गार का सृजन और क्षेत्रीय आर्थिक विकास। अनुमान है कि पहले चरण में ही 1 लाख से अधिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नौकरियां उत्पन्न होंगी। एयरपोर्ट के कारण रियल एस्टेट, होटल उद्योग, ई-कॉमर्स, लॉजिस्टिक्स और मैन्युफैक्चरिंग में भी भारी निवेश होगा।
कार्गो और लॉजिस्टिक केंद्र
इस एयरपोर्ट को एक मल्टी-मोडल कार्गो हब के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिसमें ताज ट्रेपेजियम ज़ोन (TTZ) से निर्यात बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं। जेवर एयरपोर्ट से फूल, फार्मा, टेक्सटाइल और ऑटोमोबाइल सेक्टर को विशेष लाभ मिलेगा।
पर्यावरणीय पक्ष
यह भारत का पहला कार्बन-न्यूट्रल एयरपोर्ट बनने की दिशा में अग्रसर है। इसमें सोलर पैनल, रेनवाटर हार्वेस्टिंग, सस्टेनेबल बिल्डिंग डिज़ाइन और ग्रीन एनर्जी आधारित संचालन प्रणाली को प्राथमिकता दी जा रही है।
टैक्स नीति और प्रतिस्पर्धा
एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि नोएडा एयरपोर्ट पर एविएशन टरबाइन फ्यूल (ATF) पर वैट बेहद कम है (1%), जबकि दिल्ली के IGI एयरपोर्ट पर यह 25% तक जाता है। इससे लो-कॉस्ट एयरलाइंस को नोएडा से उड़ान भरना अधिक लाभकारी होगा, जिससे IGI एयरपोर्ट को प्रतिस्पर्धा मिलेगी।
- Read more: click her
राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण
दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच टैक्स नीति को लेकर तनाव है, क्योंकि दिल्ली सरकार चाहती है कि IGI एयरपोर्ट की यात्री संख्या कम न हो। वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने नोएडा एयरपोर्ट को “गेटवे ऑफ नॉर्थ इंडिया” के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसमें निवेशकों के लिए आकर्षक नीति बनाई गई है।
चुनौतियाँ
- समय पर निर्माण कार्य पूरा करना
- भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास नीति
- एविएशन कंपनियों को आकर्षित करना
- IGI और जेवर के बीच संतुलन बनाना
निष्कर्ष
नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट केवल एक हवाई अड्डा नहीं है, यह आर्थिक, रणनीतिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भारत की नई उड़ान का प्रतीक है। यह न केवल उत्तर भारत को वैश्विक मानचित्र पर लाएगा, बल्कि भारत की लॉजिस्टिक्स और एविएशन क्षमता को दोगुना करने में सहायक होगा।
आपकी क्या राय है? क्या जेवर एयरपोर्ट भारत का सबसे प्रभावशाली हवाई अड्डा बन पाएगा? अपने विचार नीचे कमेंट में जरूर साझा करें!