भारत-यूरोपीय संघ FTA में ऑटोमोबाइल सेक्टर बना सबसे बड़ा रोड़ा
भारत और यूरोपीय संघ (European Union - EU) के बीच चल रही फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) वार्ता में ऑटोमोबाइल सेक्टर एक प्रमुख बाधा बनकर उभरा है। यूरोपीय देशों की मांग है कि भारत कारों और ऑटो पार्ट्स पर आयात शुल्क को कम करे, जबकि भारत स्थानीय उद्योग की रक्षा के लिए टैरिफ को बनाए रखना चाहता है। इस लेख में हम इस मुद्दे की पृष्ठभूमि, वर्तमान स्थिति और भारत की रणनीति पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
FTA का उद्देश्य क्या है?
फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) का मुख्य उद्देश्य दोनों पक्षों के बीच व्यापार को सरल और किफायती बनाना होता है। इसके तहत आयात-निर्यात पर लगने वाले शुल्कों को या तो पूरी तरह खत्म किया जाता है या काफी हद तक घटाया जाता है। भारत और यूरोपीय संघ के बीच यह वार्ता 2007 से चल रही है लेकिन अब इसे तेजी से अंतिम रूप देने की कोशिश हो रही है।
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ऑटोमोबाइल सेक्टर: विवाद का केंद्र
यूरोपीय संघ चाहता है कि भारत यूरोप में बनी लग्जरी कारों जैसे Mercedes-Benz, BMW, Audi आदि पर लगने वाला आयात शुल्क घटाए। वर्तमान में भारत में इन कारों पर लगभग 100% तक का आयात शुल्क लगता है, जिससे ये वाहन भारतीय बाजार में काफी महंगे पड़ते हैं।
EU का मानना है कि यदि टैरिफ कम किया जाए तो भारतीय ग्राहक बेहतर क्वालिटी की यूरोपीय कारों का लाभ उठा सकते हैं और प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी। इसके विपरीत भारत की चिंता यह है कि टैरिफ घटाने से स्थानीय वाहन उद्योग और रोजगार को खतरा हो सकता है।
भारत की रणनीति
भारत सरकार का रुख यह है कि यदि टैरिफ में कोई भी ढील दी जाती है, तो वह सीमित मात्रा में और चरणबद्ध तरीके से दी जाएगी। भारत ने प्रस्ताव रखा है कि आयात शुल्क को धीरे-धीरे 30% तक लाया जाए, लेकिन इसके लिए वह 10 से 15 साल की अवधि चाहता है। साथ ही, यह छूट सीमित संख्या की कारों पर लागू होनी चाहिए।
भारत इस बात से भी चिंतित है कि कहीं यूरोपीय कंपनियां केवल वाहनों का निर्यात करना न शुरू कर दें और स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग को नजरअंदाज कर दें। यही कारण है कि भारत "Make in India" पहल के तहत विदेशी कंपनियों को भारत में उत्पादन शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
EU की अतिरिक्त मांगें
केवल कारों ही नहीं, EU यह भी चाहता है कि भारत ऑटो पार्ट्स पर भी आयात शुल्क घटाए ताकि यूरोपीय सप्लायर्स को भारतीय ऑटो इंडस्ट्री में अधिक भागीदारी मिल सके। यह मांग भारत के लिए और भी संवेदनशील है क्योंकि इसका सीधा असर घरेलू ऑटो कंपोनेंट निर्माताओं पर पड़ सकता है।
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वार्ता की वर्तमान स्थिति
अब तक भारत और यूरोपीय संघ के बीच 8 दौर की बातचीत हो चुकी है। हालांकि कई मुद्दों पर सहमति बन गई है, लेकिन ऑटो सेक्टर अभी भी अंतिम सहमति में सबसे बड़ी रुकावट बना हुआ है। दोनों पक्ष 2025 के अंत तक इस डील को पूरा करना चाहते हैं, लेकिन शर्त यह है कि समझौता “balanced and fair” हो।
भारत के लिए क्या है दांव पर?
अगर यह FTA साइन होता है, तो भारत को यूरोपीय बाजारों में टेक्सटाइल, फर्नीचर, IT सेवाओं और फार्मा जैसे क्षेत्रों में बड़ा फायदा हो सकता है। लेकिन इसके लिए भारत को कुछ क्षेत्रों में रियायतें देनी होंगी, जिनमें ऑटोमोबाइल सेक्टर प्रमुख है।
यह जरूरी है कि भारत अपने घरेलू उद्योग की सुरक्षा और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के बीच संतुलन बनाए रखे। यही कारण है कि भारत एक सावधानीपूर्वक रणनीति के साथ आगे बढ़ रहा है।
निष्कर्ष
भारत-यूरोपीय संघ FTA एक ऐतिहासिक डील हो सकती है जो दोनों पक्षों के आर्थिक संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकती है। हालांकि, ऑटोमोबाइल सेक्टर जैसी संवेदनशील इंडस्ट्री पर मतभेद इस प्रक्रिया को जटिल बना रहे हैं। आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों पक्ष कैसे एक "विन-विन" स्थिति तक पहुंचते हैं।
क्या आपको लगता है भारत को अपने टैरिफ नियमों में ढील देनी चाहिए? नीचे कमेंट करके अपनी राय जरूर बताएं।