भारत का लेजर हथियार: भविष्य की जंग के लिए अब तैयार है भारत
आज की युद्ध नीति में तकनीक सबसे बड़ा हथियार बन चुकी है। जहां एक ओर पारंपरिक हथियारों की भूमिका कम हो रही है, वहीं लेजर आधारित Directed Energy Weapons (DEWs) जैसे आधुनिक हथियार युद्ध के तरीके को पूरी तरह से बदलने की क्षमता रखते हैं। भारत अब इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है और अपनी पहली स्वदेशी लेजर हथियार प्रणाली विकसित करने की दिशा में मजबूती से कदम बढ़ा चुका है।
लेजर DEW क्या होता है?
Directed Energy Weapon यानी DEW ऐसा हथियार है जो किसी भौतिक गोला-बारूद के बजाय केंद्रित ऊर्जा (जैसे लेजर बीम) से हमला करता है। यह ऊर्जा टारगेट को जलाकर, पिघलाकर या उसके इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को जाम करके निष्क्रिय कर सकती है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे इस्तेमाल किया जा सकता है।
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भारत की उपलब्धि: स्वदेशी लेजर हथियार प्रणाली
भारत का Defence Research and Development Organisation (DRDO) इस समय दो प्रमुख DEW प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है:
- ADITYA – 10kW लेजर सिस्टम: इसका उद्देश्य दुश्मन के ड्रोन, मिसाइल और हल्के वाहन को 2 किलोमीटर तक की दूरी से खत्म करना है।
- DEW-Mk2A – 25kW सिस्टम: यह अधिक उन्नत प्रणाली है जो उच्च गति के टारगेट जैसे फाइटर जेट और मिसाइलों को भी रोकने में सक्षम होगी।
इन प्रणालियों को भारत के बॉर्डर, एंटी-ड्रोन सिस्टम और रणनीतिक ठिकानों पर तैनात किया जाएगा।
लेजर हथियार क्यों हैं ज़रूरी?
आज के समय में ड्रोन हमलों, क्रूज़ मिसाइलों और हाइपरसोनिक टारगेट्स से रक्षा करना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है। ऐसे में लेजर हथियार एक गेम-चेंजर साबित हो सकते हैं।
कुछ प्रमुख फायदे:
- प्रति वार लागत – बेहद कम (सिर्फ बिजली की जरूरत)
- कोई बारूद नहीं – लॉजिस्टिक्स आसान
- शून्य आवाज़ – दुश्मन को भनक भी नहीं लगती
- तेज़ रिएक्शन टाइम – टारगेट तुरंत नष्ट
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दुनिया में लेजर हथियारों की स्थिति
भारत इस क्षेत्र में नया खिलाड़ी जरूर है, लेकिन तेजी से पकड़ बना रहा है।
- अमेरिका: USS Ponce पर तैनात LaWS लेजर सिस्टम 30kW की क्षमता का है।
- चीन: ZKZM-500 लेजर राइफल के जरिए वह पोर्टेबल लेजर हथियारों पर फोकस कर रहा है।
- इज़राइल: Iron Beam सिस्टम जो रॉकेट और ड्रोन को जमीन पर गिरने से पहले ही हवा में ही खत्म करता है।
भारत की योजना भी यही है कि वह आने वाले 5 वर्षों में ऐसे DEW सिस्टम तैनात कर सके जो दुश्मन के हाई-वैल्यू टारगेट को बिना पारंपरिक हथियारों के खत्म कर सके।
तकनीकी चुनौतियाँ
हालांकि इस तकनीक में अभी भी कई बाधाएँ हैं:
- ऊर्जा की आवश्यकता: उच्च क्षमता वाले लेजर को लंबे समय तक चलाने के लिए अत्यधिक पावर चाहिए।
- वातावरण का असर: धुंध, बारिश और धूल लेजर की तीव्रता को प्रभावित करते हैं।
- कूलिंग सिस्टम: लेजर बीम से अत्यधिक गर्मी पैदा होती है, जिसे ठंडा रखना जरूरी है।
DRDO और BEL जैसे भारतीय संस्थान इन चुनौतियों पर काम कर रहे हैं ताकि भारत ‘Made in India’ लेजर सिस्टम
निष्कर्ष: भारत का अगला कदम क्या है?
भारत का लक्ष्य है कि 2030 तक वह ऐसा लेजर डिफेंस नेटवर्क तैयार कर ले जो देश की सीमाओं, एयरबेस, और शहरों की रक्षा कर सके। लेजर हथियार भविष्य के युद्धों में भारत की ताकत का नया चेहरा बनेंगे।
अब भारत सिर्फ शस्त्रों से नहीं, प्रकाश की किरणों से भी अपने दुश्मनों को जवाब देगा।
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