भारत का स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व: ट्रेडिंग का फैसला कितना सही?
भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए 85-90% क्रूड ऑयल का आयात करता है। ऐसे में यदि वैश्विक स्तर पर किसी भी कारण से आपूर्ति बाधित होती है या दाम अचानक बढ़ जाते हैं, तो यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। इसी कारण भारत सरकार ने स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व (SPR) की स्थापना की थी।
हाल ही में एक नई चर्चा शुरू हुई है कि इस रिजर्व के 30% हिस्से को ट्रेडिंग के लिए इस्तेमाल किया जाए। इसका अर्थ यह है कि भारत जब तेल की कीमतें ऊंची हों तो इसे बेच सकता है और जब कीमतें कम हों, तब फिर से खरीद सकता है। लेकिन क्या यह रणनीति देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए सही है?
भारत के स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व की शुरुआत
भारत में स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व की योजना 2004 में बनी थी। इसका उद्देश्य वैश्विक आपूर्ति संकट के समय देश को आवश्यक क्रूड ऑयल प्रदान करना था। अमेरिका, चीन और जापान जैसे देशों के पास कई महीनों के लिए तेल का भंडार है, जबकि भारत का मौजूदा रिजर्व सिर्फ 10 दिनों की जरूरत को पूरा कर सकता है।
वर्तमान में भारत के पास 5.33 मिलियन टन का स्ट्रेटेजिक रिजर्व है। यह रिजर्व मुख्य रूप से तीन स्थानों पर स्थित है:
- विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश) – 1.33 मिलियन टन
- मेंगलुरु (कर्नाटक) – 1.5 मिलियन टन
- पदूर (कर्नाटक) – 2.5 मिलियन टन
सरकार भविष्य में इस क्षमता को बढ़ाकर 11 मिलियन टन करने की योजना बना रही है।
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भारत का नया प्रस्ताव: ट्रेडिंग से होगा फायदा या नुकसान?
सरकार ने 2021 में इंडियन स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व लिमिटेड (ISPRL) को यह अनुमति दी कि वह अपने कुल भंडार का 30% हिस्सा अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ व्यापार कर सकती है। इसका तर्क यह है कि जब तेल की कीमतें ऊंची होती हैं, तो इसे बेचकर मुनाफा कमाया जा सकता है और जब कीमतें गिरती हैं, तो इसे फिर से खरीदा जा सकता है।
लेकिन इस योजना के साथ कई चुनौतियां और खतरे भी जुड़े हुए हैं।
ट्रेडिंग से संभावित जोखिम
ऊर्जा सुरक्षा पर खतरा
स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व का उद्देश्य आपातकालीन परिस्थितियों में देश की जरूरतों को पूरा करना है। यदि भारत पहले ही अपना 30% भंडार बेच देता है और बाद में वैश्विक संकट आ जाता है, तो यह गंभीर समस्या खड़ी कर सकता है।
क्रूड ऑयल की अस्थिर कीमतें
क्रूड ऑयल की कीमतें बहुत अस्थिर होती हैं। यदि भारत ने ऊंची कीमतों पर तेल बेच दिया और फिर कीमतें और भी अधिक बढ़ गईं, तो इसे फिर से खरीदना मुश्किल हो सकता है।
विदेशी कंपनियों पर निर्भरता
इस योजना के तहत भारत को विदेशी कंपनियों जैसे शेल, ग्लेनकोर, विटोल जैसी कंपनियों पर निर्भर रहना होगा। अगर इन कंपनियों ने किसी कारणवश आपूर्ति नहीं की, तो भारत के पास सीमित विकल्प रह जाएंगे।
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आपूर्ति संकट की स्थिति
हाल ही में यमन के हूती विद्रोहियों द्वारा रेड सी में तेल टैंकरों को निशाना बनाया गया। अगर इसी तरह की कोई घटना फिर से होती है और भारत ने अपना रिजर्व पहले ही बेच दिया हो, तो वह संकट में आ सकता है।
अमेरिका और चीन से सबक लेना जरूरी
अमेरिका के पास लगभग 700 मिलियन बैरल का स्ट्रेटेजिक रिजर्व है, जिससे वह 90 दिनों तक अपनी जरूरतों को पूरा कर सकता है। इसी तरह, चीन के पास भी कई महीनों का तेल भंडार है। लेकिन ये देश अपने भंडार को व्यापारिक उद्देश्यों के लिए नहीं, बल्कि केवल आपातकाल के लिए रखते हैं।
अगर भारत अपने रिजर्व का व्यापार करना शुरू करता है, तो वह वास्तविक संकट के समय असहाय हो सकता है।
निष्कर्ष: क्या भारत को अपने पेट्रोलियम रिजर्व की ट्रेडिंग करनी चाहिए?
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपने स्ट्रेटेजिक रिजर्व को सिर्फ आपातकालीन जरूरतों के लिए ही रखना चाहिए। इसे ट्रेडिंग के लिए इस्तेमाल करने से देश की ऊर्जा सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
यदि सरकार को लागत कम करने की जरूरत है, तो उसे स्वदेशी तेल उत्पादन बढ़ाने, वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान देने और दीर्घकालिक ऊर्जा नीति बनाने की जरूरत है।
आप इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं? क्या भारत को अपने रणनीतिक भंडार का व्यापार करना चाहिए या इसे केवल आपात स्थिति के लिए सुरक्षित रखना चाहिए? अपने विचार हमें कमेंट में बताएं!