अमेरिका का यूरोप से सैनिकों की वापसी पर विचार: क्या बदल जाएगा वैश्विक संतुलन

अमेरिका का यूरोप से सैनिकों की वापसी पर विचार: क्या बदल जाएगा वैश्विक संतुलन?

वर्तमान समय में वैश्विक राजनीति में एक बड़ा भूचाल आता दिखाई दे रहा है। अमेरिका के रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) द्वारा यह विचार किया जा रहा है कि यूरोप से 10,000 अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला लिया जाए। इस खबर ने पूर्वी यूरोप के देशों में चिंता की लहर फैला दी है, विशेष रूप से पोलैंड और रोमानिया जैसे देशों में, जो यूक्रेन युद्ध के दौरान लॉजिस्टिक सपोर्ट के केंद्र रहे हैं।

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यह निर्णय क्यों विचाराधीन है?

पेंटागन इस समय एक व्यापक ग्लोबल फोर्स रिबैलेंसिंग रणनीति पर काम कर रहा है। इसके पीछे तीन प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं:

  1. इंडो-पैसिफिक में तनाव: अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव, ताइवान मुद्दा, और साउथ चाइना सी विवादों के चलते अमेरिका अपनी सैन्य ताकत को एशिया में केंद्रित करना चाहता है।
  2. बजट दबाव: ट्रंप प्रशासन बार-बार सवाल उठा रहा है कि अमेरिका दुनिया भर में रक्षा खर्च क्यों उठा रहा है। यूक्रेन को अब तक 100 अरब डॉलर से अधिक की मदद दी जा चुकी है।
  3. रूस का घटता खतरा: कई विश्लेषकों का मानना है कि 2024-25 में रूस ने यूक्रेन में कोई बड़ा सैन्य लाभ नहीं लिया है, जिससे खतरे की धार कमजोर हुई है।


पूर्वी यूरोप पर असर

अगर यह सैनिक वापसी होती है, तो सबसे बड़ा असर पूर्वी यूरोप के देशों पर पड़ेगा, विशेषकर पोलैंड और रोमानिया पर। ये देश नाटो के लिए लॉजिस्टिक हब के रूप में कार्य कर रहे हैं। यहां से हथियार, दवाइयां और अन्य आपूर्ति यूक्रेन तक पहुँचाई जाती रही है। सैनिकों की वापसी इन देशों को असुरक्षित बना सकती है।

नेटो में मतभेद और अमेरिका की भूमिका

नेटो के भीतर भी इस फैसले को लेकर मतभेद सामने आ रहे हैं। नेटो के सुप्रीम अलाइड कमांडर यूरोप, जनरल क्रिस्टोफर कावोली ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है। उनका मानना है कि इससे रूस के खिलाफ नाटो की डिटरेंस पावर कमजोर होगी और पुतिन अधिक आक्रामक हो सकते हैं।

इसके साथ ही अमेरिकी संसद में भी विपक्ष दिखने लगा है। हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की एक कमेटी के अध्यक्ष माइक रजर ने चेताया है कि इससे पूर्वी यूरोप में मिलिट्री वैक्यूम बन सकता है और नाटो में अमेरिका की लीडरशिप कमजोर होगी।

यूरोप की रणनीति क्या होगी?

यूरोपीय देशों को पहले से यह आभास था कि ट्रंप प्रशासन अमेरिका को वैश्विक जिम्मेदारियों से अलग कर सकता है। इटली, फ्रांस और जर्मनी जैसे देश पहले से ही यूरोपियन यूनियन के नेतृत्व में एक वैकल्पिक रक्षा ढांचे की योजना बना रहे हैं।

वर्तमान में रोमानिया में सी शील्ड 25 नामक नाटो की सबसे बड़ी नौसैनिक ड्रिल चल रही है, जिसमें 12 देशों के 2300 सैनिक भाग ले रहे हैं। यह दर्शाता है कि यूरोप अकेले भी अपनी रक्षा के लिए तैयार हो रहा है।



रूस की रणनीति पर असर

अगर अमेरिका सैनिकों की वापसी करता है, तो पुतिन इसे रणनीतिक जीत के रूप में देख सकते हैं। रूस मोल्डोवा, बेलारूस और ब्लैक सी क्षेत्रों में अपना प्रभाव और मजबूत कर सकता है। यह देश पहले से ही रूस समर्थक माने जाते हैं।

साथ ही, रूस हाइब्रिड वॉरफेयर — साइबर, राजनीतिक और ऊर्जा रणनीति — को और आक्रामक बना सकता है। नेटो में पैदा हुई दरारों का फायदा उठाया जा सकता है।

अमेरिका की दुविधा

यह पूरी स्थिति अमेरिका को एक भू-राजनीतिक दुविधा में डाल रही है। क्या अमेरिका नेटो और रूस के खतरे को प्राथमिकता दे या चीन और इंडो-पैसिफिक में बढ़ते तनाव को? इस सवाल का उत्तर आगामी महीनों में होने वाली नाटो समिट और चुनावी रणनीतियों में मिल सकता है।

निष्कर्ष

अमेरिका द्वारा 10,000 सैनिकों की वापसी का प्रस्ताव केवल एक सैन्य निर्णय नहीं है, बल्कि यह वैश्विक सत्ता संतुलन को बदल सकता है। यूरोप को अपने डिफेंस बजट में भारी बढ़ोतरी करनी पड़ सकती है, वहीं रूस और चीन इसका फायदा उठाकर नई रणनीतियाँ बना सकते हैं।

यह स्थिति भारत जैसे देशों के लिए भी सीखने वाली है कि कैसे स्वतंत्र रक्षा नीति और सामरिक आत्मनिर्भरता आज के समय की जरूरत बन चुकी है।

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