अमेरिका-चीन टैरिफ युद्ध 2025: वैश्विक बाजार पर प्रभाव

अमेरिका-चीन टैरिफ युद्ध 2025: वैश्विक बाजार पर प्रभाव

2025 की शुरुआत के साथ ही वैश्विक व्यापार जगत में एक बड़ा झटका देखने को मिला। अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से जारी व्यापार तनाव ने एक बार फिर गंभीर रूप ले लिया है। अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सत्ता में वापसी के बाद व्यापार नीति में आक्रामक रुख अपनाया गया। उन्होंने चीन से आयात होने वाले लगभग 300 अरब डॉलर के उत्पादों पर 60% तक टैरिफ लगाने की घोषणा की।

इस टैरिफ नीति का असर न सिर्फ अमेरिका और चीन तक सीमित रहा, बल्कि वैश्विक बाजारों, निवेशकों और आपूर्ति श्रृंखलाओं पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। यह टैरिफ युद्ध एक बार फिर साबित करता है कि दो महाशक्तियों की नीतियाँ पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को किस तरह प्रभावित कर सकती हैं।

US-China Tariff War 2025


NASDAQ और वैश्विक बाजार में हलचल

टैरिफ युद्ध की खबरों के बाद अमेरिकी शेयर बाजारों में तेजी से गिरावट देखी गई।

  • 4 अप्रैल 2025: NASDAQ Composite इंडेक्स 15,587.79 पर बंद हुआ।
  • 8 अप्रैल 2025: यह गिरकर 15,267.91 पर आ गया।

लगभग 320 अंकों की गिरावट (2.05%) ने निवेशकों की चिंता को उजागर कर दिया। इसके अलावा डाओ जोंस और S&P 500 में भी गिरावट दर्ज की गई, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि निवेशकों को वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता का डर सता रहा है।



चीन की प्रतिक्रिया और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर असर

चीन ने भी जवाबी कदम उठाने की बात कही है। संभव है कि वह अमेरिका से आयातित कृषि उत्पादों और सेमीकंडक्टर्स पर टैरिफ बढ़ा दे। इससे अमेरिकी किसानों और टेक इंडस्ट्री को बड़ा झटका लग सकता है। इस व्यापार युद्ध का असर इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, चिप निर्माण और टेक्नोलॉजी उद्योगों पर साफ दिखाई दे रहा है।

कई बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ जैसे Apple, Tesla, और Dell अब चीन से बाहर अपने वैकल्पिक उत्पादन केंद्र खोज रही हैं। इससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में पुनर्संयोजन (realignment) का दौर शुरू हो गया है।

भारत के लिए छिपे हुए अवसर

हालाँकि यह संकट विश्व के लिए चुनौती है, पर भारत जैसे विकासशील देश के लिए इसमें कई अवसर छिपे हैं। 'मेक इन इंडिया', 'PLI स्कीम', और सेमीकंडक्टर मिशन जैसी सरकारी योजनाएँ अब और अधिक आकर्षक हो सकती हैं। चीन से हटती हुई कंपनियाँ भारत को उत्पादन हब के रूप में देख रही हैं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि भारत इस समय निवेश और Ease of Doing Business को सुधारता है, तो वह वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग में चीन का एक मजबूत विकल्प बन सकता है। यह न केवल आर्थिक विकास को बल देगा, बल्कि भारत को वैश्विक रणनीतिक समीकरणों में भी मजबूत बनाएगा।



भविष्य की दिशा और निष्कर्ष

2025 का यह अमेरिका-चीन टैरिफ युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है। आगामी महीनों में स्थिति और गंभीर हो सकती है। दोनों देश WTO नियमों के बाहर जाकर टैरिफ लगा रहे हैं, जिससे वैश्विक व्यापार का नियम-आधारित ढाँचा कमजोर पड़ सकता है।

भारत को इस टकराव में संतुलन बनाए रखना होगा — एक ओर वह अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है, वहीं चीन उसका प्रमुख व्यापारिक साझेदार भी है। भारत को सतर्कता और चतुराई से चलना होगा ताकि वह इस संघर्ष को अवसर में बदल सके।

टैरिफ युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था को कैसे हिला सकता है, यह 2025 में एक बार फिर स्पष्ट हो गया है। अब देखना यह होगा कि विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाएँ इस संकट से कैसे निपटती हैं और क्या भारत इसका रणनीतिक लाभ उठा पाता है?

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